श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
छं.-जय सगुन निर्गुन रूप रूप अनूप भूप सिरोमने।
दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने।।
अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दुख दहे।।
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संयुक्त सक्ति नमामहे।।1।।
दसकंधरादि प्रचंड निसिचर प्रबल खल भुज बल हने।।
अवतार नर संसार भार बिभंजि दारुन दुख दहे।।
जय प्रनतपाल दयाल प्रभु संयुक्त सक्ति नमामहे।।1।।
हे सगुण और निर्गुणरूप ! हे अनुपम
रूप-लावण्ययुक्त ! हे राजाओं के शिरोमणि! आपकी जय हो। आपने रावण आदि प्रचण्ड, प्रबल और दुष्ट निशाचरोंको अपनी
भुजाओंके बल से मार डाला। आपने मनुष्य-अवतार लेकर संसारके भारको नष्ट करके
अत्यन्त कठोर दुःखों को भस्म कर दिया। हे दयालु ! हे शरणागतकी रक्षा
करनेवाले प्रभो ! आपकी जय हो। मैं शक्ति (सीताजी) सहित शक्तिमान आपको
नमस्कार करता हूँ।।1।।
तव बिष माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे।
भव पंथ भ्रमत अमित दिवस निसि काल कर्म गुननि भरे।।
जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे।
भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे।।2।।
भव पंथ भ्रमत अमित दिवस निसि काल कर्म गुननि भरे।।
जे नाथ करि करुना बिलोके त्रिबिधि दुख ते निर्बहे।
भव खेद छेदन दच्छ हम कहुँ रच्छ राम नमामहे।।2।।
हे हरे ! आपकी दुस्तर मायाके वशीभूत होनेके
कारण देवता, राक्षस, नाग,
मनुष्य और चर अचर सभी काल, कर्म और गुणों से भरे हुए (उनके वशीभूत हुए)
दिन-रात अनन्त भव (आवागमन) के मार्ग में भटक रहे हैं। हे नाथ ! इनमें से
जिनको आपने कृपा करके (कृपादृष्टिसे) देख लिया, वे [माया-जनित] तीनों
प्रकारके दुःखोंसे छूट गये। हे जन्म मरणके श्रमको काटने में कुशल
श्रीरामजी ! हमारी रक्षा कीजिये। हम आपको नमस्कार करते हैं।।2।।
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