श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
A PHP Error was encounteredSeverity: Notice Message: Undefined index: author_hindi Filename: views/read_books.php Line Number: 21 |
निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |
वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
छन महिं सबहिं मिले भगवाना। उमा मरम यह काहुँ न जाना।।
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा।।4।।
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा।।4।।
भगवान् क्षण मात्र में सबसे मिल लिये। हे उमा! यह रहस्य किसी ने नहीं
जाना। इस प्रकार शील और गुणों के धाम श्रीरामजी सबको सुखी करके आगे
बढ़े।।4।।
कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई।।5।।
कौसल्या आदि माताएँ ऐसे दौड़ीं मानो नयी
ब्यायी हुई गौएँ अपने बछड़ों को देखकर दौंड़ी हों।।5।।
छं.-जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन हुंकार करि धावत भईं।।
अति प्रेम प्रभु सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे।
गइ बिषम बिपति बियोगभव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे।।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन हुंकार करि धावत भईं।।
अति प्रेम प्रभु सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे।
गइ बिषम बिपति बियोगभव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे।।
मानो नयी ब्यायी हुई गौएँ अपने छोटे बछड़ों
को घर पर छोड़ परवश होकर वनमें
चरने गयी हों और दिन का अन्त होने पर [बछड़ोंसे मिलने के लिये] हुंकार
करके थन से दूध गिराती हुई नगर की ओर दौड़ीं हों। प्रभु ने अत्यन्त
प्रेमसे सब माताओंसे मिलकर उनसे बहुत प्रकार के कोलल वचन कहे। वियोगसे
उत्पन्न भयानक विपत्ति दूर हो गयी और सबने [भगवान् से मिलकर और उनके वचन
सुनकर] अगणित सुख और हर्ष प्राप्त किये।
To give your reviews on this book, Please Login