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श्रीरामचरितमानस (किष्किन्धाकाण्ड)

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निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (किष्किन्धाकाण्ड)

भगवान श्रीराम की सुग्रीव और हनुमान से भेंट तथा बालि का भगवान के परमधाम को गमन

Ram Charit Manas Arthat Tulsi Ramayan Kishkindhakand

॥ श्रीगणेशाय नमः।

श्रीजानकीवल्लभो विजयते

| श्रीरामचरितमानस |

चतुर्थ सोपान

किष्किन्धाकाण्ड

श्लोक

कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवौ हितौ
सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः॥१॥


कुन्दपुष्प और नील कमलके समान सुन्दर गौर एवं श्यामवर्ण, अत्यन्त बलवान्, विज्ञानके धाम, शोभासम्पन्न, श्रेष्ठ धनुर्धर, वेदोंके द्वारा वन्दित, गौ एवं ब्राह्मणों के समूह के प्रिय [अथवा प्रेमी], माया से मनुष्यरूप धारण किये हुए, श्रेष्ठ धर्मके लिये कवचस्वरूप, सबके हितकारी, श्रीसीताजी की खोज में लगे हुए, पथिकरूप रघुकुलके श्रेष्ठ श्रीरामजी और श्रीलक्ष्मणजी दोनों भाई निश्चय ही हमें भक्तिप्रद हों॥१॥

ब्रह्माम्भोधिसमुद्भवं कलिमलप्रध्वंसनं चाव्ययं
श्रीमच्छम्भुमुखेन्दुसुन्दरवरे संशोभितं सर्वदा।
संसारामयभेष... सुखकरं श्रीजानकीजीवनं
धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्॥२॥


वे सुकृती (पुण्यात्मा पुरुष) धन्य हैं जो वेदरूपी समुद्र [के मथने] से उत्पन्न हुए कलियुगके मलको सर्वथा नष्ट कर देनेवाले, अविनाशी, भगवान् श्रीशम्भु के सुन्दर एवं श्रेष्ठ मुखरूपी चन्द्रमामें सदा शोभायमान, जन्म-मरणरूपी रोगके औषध, सबको सुख देनेवाले और श्रीजानकीजीके जीवनस्वरूप श्रीरामनामरूपी अमृतका निरन्तर पान करते रहते हैं॥२॥

सो०- मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर।
जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न॥


जहाँ श्रीशिव-पार्वती बसते हैं, उस काशीको मुक्तिकी जन्मभूमि, ज्ञानकी खान और पापोंका नाश करनेवाली जानकर उसका सेवन क्यों न किया जाय?

जरत सकल सुर बूंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥

जिस भीषण हलाहल विषसे सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन ! तू उन शङ्करजीको क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु [और] कौन है?

  1. भगवान् राम की ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से भेंट
  2. सुग्रीव द्वारा सीताजी को देखने की पुष्टि
  3. सुग्रीव की व्यथा कथा और भगवान् की सहानुभूति
  4. बालि के साथ युद्ध के लिए सुग्रीव की ललकार
  5. भगवान् द्वारा बालि को परम धाम की प्राप्ति
  6. लक्ष्मणजी द्वारा सुग्रीव का राज्याभिषेक
  7. वर्षा-ऋतु में भगवान् का प्रवर्षण पर्वत पर निवास
  8. वर्षा-ऋतु में भगवान् द्वारा प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन
  9. शरद ऋतु के आगमन तक भी सीताजी के संबंध में कोई सूचना न मिलने से विषाद
  10. सीताजी की खोज में वानरों का हर दिशा में प्रस्थान
  11. भगवान् द्वारा हनुमानजी को आशीर्वाद और चिह्न स्वरूप मुद्रिका देना
  12. प्यासे और वन में भटके हुए वानरों को प्रभु की शक्ति द्वारा सागर तट पर पहुँचाना
  13. हताश वानरों को जाम्बवान् का उपदेश और सम्पाती द्वारा सहायता
  14. जाम्बवान द्वारा हनुमान का उत्साह वर्धन

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