लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (किष्किन्धाकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस (किष्किन्धाकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1980
पृष्ठ :135
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2088
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

भगवान श्रीराम की सुग्रीव और हनुमान से भेंट तथा बालि का भगवान के परमधाम को गमन


भगवान् द्वारा हनुमानजी को आशीर्वाद और चिह्न स्वरूप मुद्रिका देना

पाछे पवन तनय सिरु नावा।
जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥
परसा सीस सरोरुह पानी।
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी॥


सबके पीछे पवनसुत श्रीहनुमान् जीने सिर नवाया। कार्यका विचार करके प्रभुने उन्हें अपने पास बुलाया। उन्होंने अपने कर-कमलसे उनके सिरका स्पर्श किया तथा अपना सेवक जानकर उन्हें अपने हाथकी अंगूठी उतारकर दी॥५॥

बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु।
कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु॥
हनुमत जन्म सुफल करि माना।
चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना॥


[और कहा-] बहुत प्रकारसे सीताको समझाना और मेरा बल तथा विरह (प्रेम) कहकर तुम शीघ्र लौट आना। हनुमान्जीने अपना जन्म सफल समझा और कृपानिधान प्रभुको हृदयमें धारण करके वे चले॥६॥

जद्यपि प्रभु जानत सब बाता।
राजनीति राखत सुरत्राता।


यद्यपि देवताओंकी रक्षा करनेवाले प्रभु सब बात जानते हैं, तो भी वे राजनीतिकी रक्षा कर रहे हैं। (नीतिकी मर्यादा रखनेके लिये सीताजीका पता लगानेको जहाँ तहाँ वानरोंको भेज रहे हैं)॥७॥

दो०- चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह।
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह॥२३॥


सब वानर वन, नदी, तालाब, पर्वत और पर्वतोंकी कन्दराओंमें खोजते हुए चले जा रहे हैं। मन श्रीरामजीके कार्यमें लवलीन है। शरीरतकका प्रेम (ममत्व) भूल गया है॥ २३॥

कतहँ होइ निसिचर सैं भेटा।
प्रान लेहिं एक एक चपेटा॥।
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं।
कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं।


कहीं किसी राक्षससे भेंट हो जाती है, तो एक-एक चपतमें ही उसके प्राण ले। लेते हैं। पर्वतों और वनोंको बहुत प्रकारसे खोज रहे हैं। कोई मुनि मिल जाता है तो पता पूछनेके लिये उसे सब घेर लेते हैं॥१॥

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book