श्रीरामचरितमानस अर्थात् तुलसी रामायण बालकाण्ड)
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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामायण को रामचरितमानस के नाम से जाना जाता है। इस रामायण के पहले खण्ड - बालकाण्ड में भी मनोहारी कथा के साथ-साथ तत्त्व ज्ञान के फूल भगवान को अर्पित करते चलते हैं।
राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, रानियों का गर्भवती होना
भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥
गुर गृह गयउ तुरत महिपाला ।
चरन लागि करि बिनय बिसाला॥
एक बार राजाके मनमें बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है। राजा तुरंत ही गुरुके घर गये और चरणोंमें प्रणाम कर बहुत विनय की॥१॥
कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ॥
धरहु धीर होइहहिं सुत चारी ।
त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी॥
राजाने अपना सारा दुःख-सुख गुरुको सुनाया। गुरु वसिष्ठजीने उन्हें बहुत प्रकारसे समझाया [और कहा-] धीरज धरो, तुम्हारे चार पुत्र होंगे, जो तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध और भक्तोंके भयको हरनेवाले होंगे॥२॥
पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥
भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें ।
प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें।
वसिष्ठजीने शृङ्गी ऋषिको बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया।मुनिके भक्तिसहित आहुतियाँ देनेपर अग्निदेव हाथमें चरु (हविष्यान खीर) लिये प्रकट हुए॥३॥
सकल काजु भा सिद्ध तुम्हारा॥
यह हबि बाँटि देहु नृप जाई।
जथा जोग जेहि भाग बनाई॥
[और दशरथसे बोले-] वसिष्ठने हृदयमें जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया। हे राजन् ! [अब] तुम जाकर इस हविष्यान्न (पायस) को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बाँट दो॥४॥
परमानंद मगन नृप हरष न हृदय समाइ॥१८९॥
तदनन्तर अग्निदेव सारी सभाको समझाकर अन्तर्धान हो गये। राजा परमानन्दमें मग्न हो गये, उनके हृदयमें हर्ष समाता न था॥ १८९॥
कौसल्यादि तहाँ चलि आईं।
अर्ध भाग कौसल्यहि दीन्हा ।
उभय भाग आधे कर कीन्हा॥
उसी समय राजाने अपनी प्यारी पत्नियोंको बुलाया। कौसल्या आदि सब [रानियाँ] वहाँ चली आयीं। राजाने [पायसका] आधा भाग कौसल्याको दिया, [और शेष] आधेके दो भाग किये॥१॥
रह्यो सो उभय भाग पुनि भयऊ॥
कौसल्या कैकेई हाथ धरि ।
दीन्ह सुमित्रहि मन प्रसन्न करि॥
वह (उनमेंसे एक भाग) राजाने कैकेयीको 'दिया। शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजाने उनको कौसल्या और कैकेयीके हाथपर रखकर (अर्थात् उनकी अनुमति लेकर) और इस प्रकार उनका मन प्रसन्न करके सुमित्राको दिया॥२॥
भई हृदयँ हरषित सुख भारी॥
जा दिन तें हरि गर्भहिं आए ।
सकल लोक सुख संपति छाए।।
इस प्रकार सब स्त्रियाँ गर्भवती हुईं। वे हृदयमें बहुत हर्षित हुईं। उन्हें बड़ा सुख मिला। जिस दिनसे श्रीहरि [लीलासे ही] गर्भमें आये, सब लोकोंमें सुख और सम्पत्ति छा गयी ॥३॥
सोभा सील तेज की खानी॥
सुख जुत कछुक काल चलिगयऊ ।
जेहिं प्रभु प्रगट सो अवसर भयऊ॥
शोभा, शील और तेजकी खान [बनी हुई] सब रानियाँ महलमें सुशोभित हुईं। इस प्रकार कुछ समय सुखपूर्वक बीता और वह अवसर आ गया जिसमें प्रभुको प्रकट होना था॥४॥
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