आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
पहले युवापीढ़ी को अपने आदर्श ढूँढने के लिए परिवार व समाज के अतिरिक्त आदर्श ग्रंथों का भी सहारा रहता था जो कि भारतीय संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर हैं। आज वेद, उपनिषद, पुराण आदि को पढ़ना या उन पर चर्चा करना तो दूर, उनका नाम लेना भी पिछड़ेपन की निशानी समझी जाती है। आदर्श व प्रेरक साहित्य के प्रति अभिरुचि में भारी कमी आयी है। अश्लील एवं स्तरहीन साहित्य की भरमार है। उच्चस्तरीय साहित्यिक रचनाएँ पढ़ने की परंपरा लुप्त हो रही हैं। युवावर्ग समझ नहीं पाता कि वह क्या पढ़े और कैसे पढ़े ? देवसंस्कृति की इस उपेक्षा के कारण ही आज वह किसी सज्जन, वीर, महात्मा या महापुरुष को अपना आदर्श बनाने के स्थान पर टी. वी. और फिल्मों के पर्दे पर उनको खोजता है। वहाँ उसे हिंसा, अश्लीलता, फैशनपरस्ती, स्वच्छंदता, फूहड़ता आदि के अतिरिक्त कुछ मिलता ही नहीं। इसी सब का अनुसरण करने को वह प्रगतिशीलता समझता है। यही कारण है कि चारों ओर अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा और स्तरहीन आदर्शों की अंधभक्ति ही दिखाई देती है। ऐसे में टी. वी. पर अनेकानेक सैटेलाइट चैनलों द्वारा हमारी लोकसंस्कृति को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने का ही यह परिणाम है कि खान-पान, वेश-भूषा आचार-व्यवहार आदि सभी क्षेत्रों में युवाओं द्वारा पाश्चात्य अपसंस्कृति का अंधानुकरण हो रहा है। भारत की बहुमूल्य सांस्कृतिक परंपराओं की वह अवहेलना करता है या उपहास उड़ाता है। पाश्चात्य संस्कृति के जीवनमूल्यों को अपनाती युवापीढ़ी अपने देश की संस्कृति को हेय दृष्टि से देखने लगी है। प्रगतिशीलता के नाम पर नैतिकता का परित्याग और भारतीयता का विरोध विशेष उपलब्धियों में गिना जाता है। उसी को आदर्श हीरो का सम्मान मिलता है।
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