आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ – ‘जैसा बीज होगा, वैसी पौध होगी’, उसी के अनुरूप तो वृक्ष विकसित होगा, पुष्पित, पल्लवित और फलित होगा। आज की युवापीढ़ी की जो दुर्दशा हो रही है, उसका सर्वप्रथम दायित्व तो उनके माता-पिता और परिवार का ही है। वे स्वयं ही दुष्प्रवृत्तियों के शिकंजे में फँसे हुए हैं फिर अपनी संतान को उचित शिक्षा व संस्कार कहाँ से दे सकेंगे? युवावस्था की प्रारंभिक स्थिति में अनेक शारीरिक व मानसिक परिवर्तन होते हैं। जीवन का यह काल अत्यन्त उथलपुथल भरा होता है जब वह चारों ओर की परिस्थितियों का अपने अनुसार विवेचन करता है। इसमें अनेक प्रतिमान ध्वस्त होते हैं और नए बनते हैं। इस अवधि में वह अपने अस्तित्व को परिवार व समाज में स्थापित करने का प्रयास करता है। अपनी अस्मिता को खोजता है और ऐसे आदर्श नायक की तलाश करता है, जिसके अनुरूप स्वयं को ढाल सके। इस खोजबीन की उलझन में उसे घर से तो कुछ विशेष मिल नहीं पाता और बाहर उसका सर्वत्र शोषण ही होता है। एक समय था जब अभिमन्यु को गर्भावस्था में ही मातापिता से शिक्षा व संस्कार प्राप्त हुए थे। आज के मातापिता एवं समाज के कर्णधार स्वयं ही यह चिंतन करें कि वे अपने अभिमन्युओं को क्या बना रहे हैं?
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