आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
उल्लेखनीय है कि किसी देश का विकास, बहुसंख्यक भीड़ के सहारे नहीं बल्कि मूर्धन्य प्रतिभाओं के सहारे होता है। इनके सहयोग की मात्रा जितनी अधिक होगी, समाज-देश में प्रगति भी उतनी ही तीव्रगति से होगी। आज बड़े दुख की बात है कि अधिक धन एवं सुख-सुविधा के लोभ में देश की युवा प्रतिभाएं विदेशों में अपना रैनबसेरा बसाने के लिए आतुर हैं जबकि इन घड़ियों में शताब्दियों के विदेशी प्रभुत्व और निष्क्रियता के बाद देश एक नए पुनर्जागरण और नियति की ओर अग्रसर हो रहा है। यों तो किसी भी देश के नव निर्माण में ज्ञान एवं युवाशक्ति का योगदान सदा ही रहा है। किंतु किसी भी काल में यह इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा होगा जितना कि आज के इस वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के युग में और न ही यह इतना चुनौतीपूर्ण और अनिवार्य रहा होगा, जितना कि इन दिनों हमारे अपने देश में है। इन क्षणों में प्रत्येक युवा को जो महान् पाठ सिखाना है, वह है परिश्रम, त्याग और प्रत्येक व्यक्ति को सबके हित में कार्य करने का पाठ।
जीवन के आधारभूत मूल्य - सत्य की खोज, भावनात्मक एकता, आदर्श आदि ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में अथवा पाठ्यपुस्तकों में अंकित करके दीर्घकाल तक सुरक्षित नहीं रखे जा सकते। उच्च आदर्श और महान् उद्देश्य तब तक अर्थहीन हैं, जब तक हम भावना में भरकर अनवरत रूप से उसके लिए प्रयत्न नहीं करते। राष्ट्रीय स्वाधीनता के पचपन वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रत्येक युवा को परिश्रम, त्याग और समर्पण के द्वारा राष्ट्र के पुनर्निमाण, पुनर्जीवन और नवीनीकरण का संकल्प करना होगा अन्यथा आदर्श और मूल्य निस्तेज और नष्ट हो जायेंगे एवं उद्देश्य धूमिल पड़ जाएगा।
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