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आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848
आईएसबीएन :9781613012772

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।


नवनिर्माण का आधार - आदर्शनिष्ठ युवाशक्ति


इस तरह समाज की कुंठाओं को काटने, उसे प्रगतिगामिता से उबारने, उसका कायाकल्प कर उसे नया जीवन देने में यदि कोई समर्थ हो सकते हैं तो वे प्रबुद्ध एवं भावनाशील युवक- युवतियाँ ही हैं। उन्हें छोड़कर या उनके बिना कोई भी सुधार या क्रांतिकारी परिवर्तन लाना संभव नहीं है। समय की आवश्यकता यही है कि वे अपने हृदय में समाज निर्माण की कसक उत्पन्न करें व अपनी बिखरी शक्तियों को एकत्रित कर समाज की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करें। देश की प्रगति में ही अपनी प्रगति और उन्नति सन्निहित है। इस उदात्त दृष्टिकोण के आधार पर ही युवाशक्ति, राष्ट्रशक्ति बनकर राष्ट्र को समृद्धि, उन्नति व प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है।

कितने ही देशों के उदाहरण हैं, जिन्होंने दुतगति से प्रगति की है। जापान, कंबोडिया, डेनमार्क, चीन, क्यूबा जैसे देश कल परसों तक घोर विपन्नता में घिरे हुए थे, पर देश की प्रतिभाओं एवं युवा पीढी ने थोड़े समय के लिए अपने स्वार्थों को त्याग कर देश के विकास का संकल्प लिया। उनका संकल्प सामूहिक पुरुषार्थ के रूप में फलीभूत हुआ और कुछ ही दशकों में ये राष्ट्र भौतिक समृद्धि की दृष्टि से संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में पहुँच गए। यह चमत्कार युवाशक्ति एवं प्रतिभाशाली लोगों के मुक्तहस्त सहयोग से ही संभव हुआ। ऐसी राष्ट्रीय भावना का अकाल देश की नयी पीढ़ी में पड़ता जा रहा है। हर सुशिक्षित युवा अपनी योग्यता की कीमत तत्काल पैसे के रूप में पाना चाहता है। उच्च शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य भी धनोपार्जन तक सिमट कर रह गया है अधिकांश युवकों-युवतियों की यह मान्यता बन गयी है कि उन्हें अपनी योग्यता को पैसे के रूप में भुनाने का मनमाना अधिकार है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज एवं देश का भी ऋण उनके ऊपर चढ़ा है। उसे भी चुकाने का प्रयत्न करना चाहिए ऐसा विरले ही सोचते हैं।

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