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आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848
आईएसबीएन :9781613012772

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।

एक समय की विश्वशक्ति सोवियत रूस की प्रगति का इतिहास भी युवा शक्ति की असंदिग्ध भूमिका को स्पष्ट करता है। विखंडित सोवियत रूस की वर्तमान स्थिति जो भी हो, 1920 से 1960 तक के चार दशकों की अद्भुत प्रगति का इतिहास अपने में युवाशक्ति की मिसाल कायम किये हुए हैं। इस शताब्दी के प्रारंभ में वहाँ की तीन-चौथाई से भी अधिक जनता अशिक्षित व निर्धन थी। वैज्ञानिक क्षेत्र में देश बिल्कुल पिछड़ा हुआ था। एकाएक जो परिवर्तन की लहर आयी, वह युवाओं की सुव्यवस्थित क्रांति की परिणति थी। इसके पीछे युवाशक्ति के अथक श्रम, त्याग, लगन का एक चमकता अध्याय जुड़ा हुआ है।

सन् 1920 से 1960 के चार दशकों में वहाँ अकेले शिक्षा के क्षेत्र में जो क्रांति हुई उसका लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हुए विद्वान रूसी लेखक ए. पुल्को ने एक स्थान पर बताया है कि 1920 में 10 लाख लोगों में केवल 3000 व्यक्ति ऐसे थे, जिन्होंने उच्चतर शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद युवकों के माध्यम से सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का संगठन हुआ और देश में अकाल, विनाश की परिस्थितियों के बीच भी निरक्षरता उन्मूलन के कार्यक्रम गाँवों में, कस्बों, निवासगृहों एवं औद्योगिक संस्थाओं में स्थापित किये गए। इस शिक्षा क्रांति का उद्देश्य राष्ट्र में वैज्ञानिकों, लेखकों और कलाकारों की आवश्यकता पूर्ति करना भी था। इस आंदोलन में लेनिन, कोन्सतान्तिन त्सियोल्कीवस्को एवं इवान पावलोव जैसे अगुआ थे। लेकिन इस शिक्षा-क्रांति के प्रचार-प्रसार में अथक श्रम व त्याग करने वाली शक्ति युवाओं की ही थी। परिणामतः 1940 में 1,10,000 और 1960 में 3,34000 तक उच्चशिक्षितों की संख्या पहुँची, इन्हें विशेषज्ञ स्नातक कहा गया।

क्यूबा एक छोटा सा देश है। उसकी शक्तियाँ भी उसी के अनुपात में सीमित हैं। लेकिन वहाँ के प्रबुद्ध युवाओं ने अद्भुत् शिक्षा क्रांति करके स्वयं में एक नया इतिहास रच दिया। वहाँ जितने पढ़े-लिखे लोग थे, वे अशिक्षितों को ढूँढ-ढूँढकर पढ़ाने लगे। निरक्षरता को क्यूबा से निर्वासित करने का श्रेय जाता है वहाँ के युवाओं को। चीन व जापान में भी वहाँ के राजनैतिक परिवर्तन एवं सामाजिक सुधार का श्रेय वहाँ की युवा पीढ़ी को ही जाता है।

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