आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
युवाशक्ति को भारत माता का आह्वान
राष्ट्रनायक पं. जवाहर लाल नेहरू ने भारतमाता की प्रत्येक युवा संतान को संबोधित करते हुए कहा था- 'यदि तुम वर्तमान परिस्थिति से असंतुष्ट नहीं हो, यदि तुम इस ललक का अनुभव नहीं करते जो तुम्हें अधीर बना दे तथा कर्म के प्रति प्रेरित तथा बाध्य करे, तब तुम वृद्धजनों के उस समूह से भिन्न कहाँ हो, जो वार्ता, वादविवाद और तर्क अधिक करते हैं और काम कम? जब यह दिखाई पड़ता है कि तुममें राष्ट्र की वर्तमान परिस्थिति के प्रति सच्चा भाव है, जिज्ञासा की उत्साहपूर्ण भावना है, क्या करना है, कैसे करना है? को जानने की आकाँक्षा है, तब इस बात का विशेष महत्त्व है।
राष्ट्र के प्रत्येक युवा का वर्तमान परिस्थितियों में यही कर्त्तव्य है कि वह अपनी पुरातन संस्कृति से ओतप्रोत अपनी मातृभूमि के उत्थान के लिए कार्य करने वाली वीर संतान बने। वृद्ध लोग सीमित समय के लिए कार्य करते हैं और युवा अनंत समय के लिए। ध्यान रहे सीधे लक्ष्य की ओर बढ़ना है, कमर सीधी कर, दृढ़ होकर अपनी जमीन, अपनी अस्मिता को दृढ़ता से पकड़कर ऊँचे आकाशवत् आदर्शों को देखना है। तभी राष्ट्र निर्माण के लिए सार्थक प्रयास हो सकेंगे।
यौवन इस बात पर निर्भर नहीं है कि हम कितने छोटे हैं, बल्कि इस पर कि हममें विकसित होने की क्षमता एवं प्रगति करने की योग्यता कितनी है। विकसित होने का अर्थ है अपनी अंतर्निहित शक्तियाँ, अपनी क्षमताएं बढ़ाना। प्रगति करने का अर्थ है - अब तक अधिकृत योग्यताओं को बिना रुके निरंतर पूर्णता की ओर ले जाना। बुढापा - आयु बड़ी हो जाने का नाम नहीं है, बल्कि विकसित होने और प्रगति करने की अयोग्यता का पर्याय है। जो अपने आप को निष्कपट, साहसी, सहनशील, ईमानदार बना सकेगा, वही राष्ट्र की सर्वाधिक सेवा करने के योग्य है। उसे ही अद्वितीय एवं महान् कहा जा सकता है।
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