आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
स्वतंत्रता संघर्ष की सूत्रधार युवा शक्ति
हमेशा राष्ट्रीय गौरव की सुरक्षा के लिए युवाओं ने ही अपने कदम बढ़ाए हैं। संकट चाहे सीमाओं पर हो अथवा सामाजिक एवं राजनैतिक इसके निवारण के लिए अपने देश के युवक एवं युवतियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। देश के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी इसका साक्षी है। 1857 से 1947 तक के लम्बे स्वतंत्रता संघर्ष में देशवासियों के हृदय में राष्ट्रभक्ति एवं क्रांति के भावों का आरोपण करने वालों में युवाओं की भूमिका सर्वोपरि रही है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, ताँत्याटोपे और मंगल पाण्डे युवा थे। रानी लक्ष्मीबाई तब मात्र 26 वर्ष की थीं। अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने वाली लक्ष्मीबाई की सेना की एक जाँबाज झलकारी बाई एक युवती ही थी। उन्हीं की प्रेरणा से सुंदर, मुंदर, जुही, मोतीबाई जैसी नृत्यांगनाएं क्रांति की वीरांगनाएं बन गयी थीं, जिनका जीवन घुँघरुओं की झंकार से शुरु होकर गोले- बारूद के धमाकों में खत्म हुआ।
पश्चिम बंगाल में युवाओं को क्रांति के बलिदान मंच पर लाने वाले श्री अरविंद तब एक 25-30 वर्षीय युवा ही तो थे। उस जमाने की सर्वोच्च आई.सी.एस. परीक्षा को ठुकरा कर, राष्ट्रप्रेम से आप्लावित होकर वह राष्ट्र जागरण के महायज्ञ में कूद पड़े थे। कर्मयोगिन् एवं वन्देमातरम् जैसी क्रांतिकारी पत्रिकाओं के माध्यम से देश के युवकों में राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं क्रांति की भावना को जगाकर राष्ट्रभक्ति से भर दिया था। सैकड़ों युवक इस प्रेरणा से हँसते-हँसते फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए थे। 1908 ई में स्वाधीनता यज्ञ की बलिवेदी पर शहीद होने वाले खुदीराम बोस मात्र 18 वर्षीय किशोर थे। फाँसी के फंदे पर चढ़ने से पूर्व उनके उद्गार थे-
हाँसी-हाँसी चाड़बे फाँसी, देखिले जगत्वासी,
एक बार विदाय दे माँ, आमि धूरे आसी।
अर्थात् दुनिया देखेगी कि मैं हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर चढ़ जाऊँगा। हे भारत माता ! मुझे विदा दो, मैं बार-बार तुम्हारी कोख में जन्म लूँ।
|