आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
धर्म कोई उपासना पद्धति नहीं है। यह तो एक विराट् एवं विलक्षण जीवनचर्या है, जीवन जीने की कला है। ऋषि परम्परा द्वारा सिंचित, अवतारों एवं महापुरुषों द्वारा संरक्षित धर्म का महावृक्ष सनातन काल से पल्लवित एवं संवर्द्धित होता चला आ रहा है। इसमें 'स्व' का स्वार्थ नहीं है। इसकी छत्रछाया में समस्त विश्व 'जीवेत एवं जीवयेत' (जियो और जीने दो ) के सिद्धांत का पालन करते हुए सुख शांति पूर्वक जीवनयापन का आनंद भोगता है। देश-विदेश में फैले अनेकानेक मत-मतांतरों, उपासना पद्धतियों, कर्मकांडों के सह अस्तित्त्व के साथ अपने सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों में उत्तरोत्तर वृद्धि करना ही धर्म का मूल उद्देश्य है। इसी को हिंदुत्व भी कहते हैं। धर्म ही मानव के समस्त क्रिया-कलापों को संचालित करके संपुष्ट समाज रचना को आलंबन प्रदान करता है। व्यक्ति, परिवार, समाज या राष्ट्र जब भी धर्म से परे हटकर अधर्म के कार्यों में लिप्त हो जाते है, वह अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने का कार्य ही करते हैं।
धर्म का अर्थ है कर्त्तव्य। मनुष्य का मनुष्य के प्रति कर्त्तव्य, अन्य प्राणियों के प्रति कर्त्तव्य, पेड़-पौधों व पर्यावरण के प्रति कर्त्तव्य, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य। पूरी निष्ठा व ईमानदारी से, निस्वार्थ भाव से अपने कर्त्तव्य का पालन करना ही सच्चा धर्म है। यही मानव धर्म है। हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, पारसी हो या यहूदी, यह तो सभी के लिए समान है।
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