आचार्य श्रीराम शर्मा >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्गश्रीराम शर्मा आचार्य
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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।
अपनी उलटी जीवनचर्या को पलट कर सीधा करें
आज अधिकांश व्यक्तियों का जीवन उलटी दिशा में चल रहा है। मनुष्य स्वकेंद्रित हो गया है। वह केवल अपने लाभ की बात ही सोचता है। अपनी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति में लगा रहता है। स्वार्थ के आगे संयम तो स्वत: ही टूट जाता है। अमर्यादित आचरण से भी उसे संकोच नहीं होता। स्वयं के बाद वह अपने परिवार की बात सोचता है। पति-पत्नी और बच्चों तक ही वह सीमित रह जाता है। आगे समाज व राष्ट्र के बारे में तो वह सोचता ही नहीं। होना तो यह चाहिए कि पहले राष्ट्र और समाज के कल्याण के कार्य करें और फिर अपने कुटुंब व परिवार के लिए। स्वयं का कल्याण तो स्वत: ही हो जाएगा। जब इस प्रकार की भावना मन में आएगी तो मनुष्य कभी भी दुखी नहीं होगा चाहे कैसी भी समस्याएँ उसके सामने क्यों न आएँ। इस उलटे मार्ग पर हम इसीलिए चल पड़े हैं क्योंकि हमने 'पुरुषार्थ चतुष्टय' के महामंत्र को भुला दिया है।
पुरुषार्थ चतुष्टय का तात्पर्य है कि हमारा सारा पुरुषार्थ चार बिंदुओं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पर आधारित हो। विद्वान मनीषियों ने गहन चिंतन-मनन के बाद हमारे कर्मों के लिए यह चार आधार निश्चित किए थे और इनका क्रम भी। उत्तम, चरित्रवान, सुसंस्कारित और परिष्कृत व्यक्तियों से युक्त समाज का निर्माण करने के लिए धर्म, अर्थ. काम और मोक्ष की नसैनी हमें सौंपी थी। धर्म उसकी पहली सीढ़ी है फिर अर्थ और काम, तब अंत में मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। आज हम धर्म को तिलांजलि देकर, अर्थ व काम में लिप्त होकर, मोक्ष की खोज में भटक रहे हैं। फिर चिरंतन सुख की प्राप्ति कैसे होगी? ऐसे में तो केवल अशांति और कुंठा ही हाथ लगेगी।
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