आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
एमर्सन ने कहा है, ''आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है।'' मनुष्य कितना ही विद्वान, गुणवान, शक्तिशाली क्यों न हो, लेकिन यदि उसमें आत्मविश्वास की भावना नहीं है, तो वह विद्वान होकर भी मूर्खों जैसा जीवन बिताएगा। शक्तिशाली होकर भी कायर सिद्ध होगा। आत्मविश्वास मनुष्य के कार्य-कलाप, उसके जीवन-व्यवहार, गति आदि में एक प्रकार की चैतन्यता, जीवट भर देता है। उसके समस्त जीवन को प्राणवान बना देता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों पर देखने मात्र से अपना प्रभाव डालता है और लोग उस पर विश्वास करने लग जाते हैं। उसमें एक प्रकार की दिव्यता, महानता सी मालूम पड़ती है।
आत्मविश्वास मनुष्य की शक्तियों को संगठित करके उन्हें एक दिशा में लगाता है। शारीरिक, मानसिक शक्तियाँ आत्मविश्वासी के इशारे पर नाचती हैं और काम करती हैं। जो अपनी शक्तियों का स्वामी है, नियंत्रणकर्त्ता है, उसे संसार में कोई भी कमी नहीं रहती, सिद्धि, सफलताएँ स्वयं आकर उसके दरवाजे खटखटाती हैं।
इंग्लैड का वेल्स बचपन से ही बहुत दुबला- पतला था, पर हिम्मत देखते बनती थी। सिपाही से सेनापति बना। उसने ऐसे मोर्चे जीते जिनकी सफलता की किसी को आशा नहीं थी। एक लड़ाई में उसका दाहिना हाथ चला गया, तो भी उसने हिम्मत नहीं हारी। दूसरे मोर्चे में एक आँख चली गई। सरकार ने उसे अपाहिजों की पेंशन देनी चाही तो उसने इनकार कर दिया। अगले मोर्चे पर वह पहले से भी अधिक उत्साह से लड़ने गया। लड़ाई जीतने का उसे विश्वास था क्योंकि उसके पास सूझबूझ वाला दिमाग और हिम्मत वाला कलेजा था। सभी परिस्थितियों में इतनी सफलता प्राप्त करने वालों में वेल्स का नाम सेना के इतिहास में अनुपम है। उन्हें ब्रिटिश का राणा सांगा कहा जाता है। कायर एक बार जीता और बार-बार मरता है, पर आत्मविश्वासी एक बार जन्म लेता, एक ही बार मरता है।
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