आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
कवींद्र रवींद्र का अकेला चल शीर्षक वाला गीत आपने पढ़ा या सुना होगा। उस गीत के भाव हैं-''यदि कोई तुझ से कुछ न कहे, तुझे भाग्यहीन समझकर सब तुझसे मुँह फेर ले और सब तुझसे डरें, तो भी तू अपने खुले हृदय से अपना मुँह खोलकर अपनी बात कहता चल।''
''अगर तुझसे सब विमुख हो जाएँ यदि गहन पथ प्रस्थान के समय कोई तेरी ओर फिर कर भी न देखे, तब पथ के काँटों को अपने लहू-लुहान पैरों से दलता हुआ अकेला चल।''
''यदि प्रकाश न हो, झंझावात और मूसलाधार वर्षा की अँधेरी रात में जब अपने घर के दरवाजे भी तेरे लिए लोगों ने बंद कर दिए हों, तब उस वज़्रानल में अपने वक्ष के पिंजर को जलाकर उस प्रकाश में अकेला ही चलता रह।''
निस्संदेह हर परिस्थिति में मनुष्य का एकमात्र साथी उसका अपना आपा ही है। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में-''आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं, आत्मविश्वास के कारण दुर्गम पथ भी सुगम बन जाते हैं, बाधाएँ भी मंजिल पर पहुँचाने वाली सीढ़ियाँ बन जाती हैं।'
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