आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
आत्मनिर्भरता
अपने ऊपर विश्वास करना, अपनी शक्तियों पर विश्वास करना एक ऐसा दिव्य गुण है जो हर कार्य को करने योग्य साहस, विचार एवं योग्यता उत्पन्न करता है। दूसरों के ऊपर निर्भर रहने से अपना बल घटता है और इच्छाओं की पूर्ति में अनेक बाधाएँ उपस्थित होती हैं। स्वाधीनता, निर्भयता और प्रतिष्ठा इस बात में है कि अपने ऊपर निर्भर रहा जाए सफलता का सच्चा और सीधा पथ यही है। अपनी हर एक बाह्य परिस्थिति की जिम्मेदारी दूसरों पर मत डालिए वरन अपने ऊपर लीजिए। दुनिया को दर्पण के समान समझिए जिसमें अपनी ही सूरत दिखाई पड़ती है। दूसरे लोगों में जो अच्छाइयाँ-बुराइयाँ दिखाई पड़ती हैं, सामने जो प्रिय- अप्रिय परिस्थितियाँ आती हैं, इसका कारण कोई और नहीं, वरन आप स्वयं हैं और उनमें परिवर्तन करने की शक्ति भी किसी और में नहीं, वरन आप में है। मनोविज्ञान शास्त्र बताता है कि मनुष्य में यह एक बड़ी भारी त्रुटि है कि वह अपनी भूल या न्यूनता को स्वीकार नहीं करता। अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेने को तैयार नहीं होता। अपने दोषों को दूसरों के ऊपर थोपने का प्रयास करके वह स्वयं निर्दोष बनता है।
हम मानते हें कि दूसरों में भी दोष हैं, अनायास अप्रिय परिस्थितियाँ भी सामने आती हैं, पर काँटों से आसानी के साथ बच निकलने योग्य विवेक की आँखें भी तो मौजूद हैं। अच्छाइयों के साथ बुराइयों से बच निकलना बुद्धिमत्ता का काम है। ऐसी बुद्धिमत्ता तब आती है जब आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण को अपना लिया जाता है। आप किसी गुत्थी को सुलझाने के लिए दूसरों की सहायता ले सकते हैं, पर उनके ऊपर अवलंबित मत रहिए। आप अपनी कठिनाइयों को सुलझाने का प्रयत्न करिए। जब तक आप दूसरों पर आश्रित रहते हैं, यह समझते हैं कि हमारे कष्टों को कोई और दूर करेगा, तब तक बहुत बड़े भ्रम में हैं। सारी समस्याओं को सुलझाने की कुंजी अपने अंदर है। दूसरे लोगों से जिस बात की आशा करते हैं, उसकी योग्यता अपने अंदर पैदा कीजिए तो अनायास बिना माँगे ही वह इच्छाएँ पूरी होने लगेंगी।
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