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आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण

उन्नति के तीन गुण-चार चरण

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :36
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9847
आईएसबीएन :9781613012703

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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।

श्री चमनलाल सीतलवाड़ मुंबई की किसी फर्म में काम करते थे। एक मामले में बचने के लिए एक आदमी उनके पास आया और एक लाख रुपए की रिश्वत देने लगा, पर श्री सीतलवाड़ ने उसे अस्वीकार कर दिया। उस व्यक्ति ने कहा, ''इतनी बड़ी रकम कोई देगा नहीं।'' श्री सीतलवाड हँसे और बोले,  ''देने वाले तो बहुत होंगे, पर इनकार करने वाला मुझ जैसा ही मिलेगा।'' यही सीतलवाड़ एक दिन बंबई विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए।

ईमानदार हमें अपने प्रति, भगवान के प्रति, परिवार के प्रति व समाज के प्रति भी रहना चाहिए। हम अपनी आत्मा के दरबार में झूठे, बेईमान साबित न हों। जैसे भीतर हैं, वैसे ही बाहर रहें। छल, झूठ, कपट, फरेब किसी भी प्रकार हमारे भीतर प्रवेश न करें व पारिवारिक जिम्मेदारी के प्रति हम अपना फर्ज निबाहें।

ईमानदारी बरतना सरल है, जबकि बेईमानी करने वाले को अनेक प्रपंच रचने और छल अपनाने पड़ते हैं। स्मरण रखने योग्य तथ्य यह है कि ईमानदारी के सहारे ही कोई व्यक्ति प्रामाणिक और विश्वासी बन पाता है। वह जन-जन का स्नेह, सहयोग, सम्मान पाता है। बेईमान व्यक्ति भी चाहेगा कि उसका नौकर ईमानदार हो। इससे स्पष्ट है कि ईमानदार की सामर्थ्य और आवश्यकता कितनी बढ़ी- चढ़ी है। इसकी प्रतिष्ठा और गरिमा अंत तक बनी रहती है। झूठों की बेईमानी तो काठ की हांडी की तरह एक बार ही चढ़ती है।

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