आचार्य श्रीराम शर्मा >> उन्नति के तीन गुण-चार चरण उन्नति के तीन गुण-चार चरणश्रीराम शर्मा आचार्य
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समस्त कठिनाइयों का एक ही उद्गम है – मानवीय दुर्बुद्धि। जिस उपाय से दुर्बुद्धि को हटाकर सदबुद्धि स्थापित की जा सके, वही मानव कल्याण का, विश्वशांति का मार्ग हो सकता है।
ईमानदारी
समझदारी के अतिरिक्त मानवी गरिमा में चार चाँद लगाने वाली है - ईमानदारी। ईमानदारी का अर्थ मोटे रूप में आर्थिक लेनदेन में प्रामाणिकता बरतना माना जाता है। वस्तुतः वह उतने क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
व्यापारी वस्तुओं में मिलावट न करें, नासमझों की जेब न काटें, कर चोरी न करें, रिश्वत के आधार पर अनुचित लाभ न उठाएँ। साधारणतया ये बातें ईमानदारी की सीमा में आती हैं। यह नीति ऐसी है, जिसे अपनाने पर कोई आरंभ में घाटे में भले ही रहे, पर अंततः भरपाई हो जाती है।
जिन लोगों को ठाठ-बाट बनाने में, विलासिता में या फैशन-परस्ती में अनावश्यक राशि खरच करनी पड़ती है, वे ईमानदार नहीं रह सकते। फिजूलखरची की पूर्ति ऊपरी आमदनी या बेईमानी से कमाई आमदनी से ही होती है। ऐसे लोग कर्ज लेने से लेकर ठगी, जालसाजी सब कुछ कर सकते हैं और फिर चुकाने का प्रसंग आने पर मुकर जाते हैं। जिस कमाई में समुचित श्रम नहीं लगा है, उसे बेईमानी की कमाई कहा जा सकता है जैसे-जुआ, सट्टा, चोरी, लॉटरी लगाना आदि। ऐसी कमाई जिस किसी के पास जाएगी, उसे दुर्व्यसनों में लिप्त करेगी।
छोटी बहन के साथ एक लड़का घूमने निकला। मार्ग में नटखट बहन ने एक अमरूद वाले को धक्का दे दिया, सारे अमरूद कीचड़ में गिरकर बेकार हो गए। लड़का अमरूद वाले को लेकर घर आया और माँ से अमरूद वाले को पैसे देने के लिए कहा। माँ बहुत झल्लाई और पैसे नहीं दिए तो उस लड़के ने अपने नाश्ते के पैसे देकर दंड की भरपाई की और खुद डेढ़ महीने तक नाश्ता नहीं किया। यही बालक आगे चलकर नेपोलियन बोनापार्ट बना।
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