आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
बातचीत का स्तर भी मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रकट करता है ज्यादा चुप रहने वाले अथवा अधिक बोलने वाले दोनों ही तरह के लोग अच्छे नहीं समझे जाते। आवश्यकतानुसार ठोस और नपी- तुली बातचीत करना मनुष्य के व्यक्तित्व का वजन बढ़ाता है। बिना सोचे-समझे, ऊटपटांग, भाषा की अशुद्धता, अशिष्टता, जोर-जोर से बातें करना, बीच में ही किसी को टोक देना, बेमौके बात करना, अपनी ही अपनी कहते जाना बातचीत के दोष हैं। बातचीत में अपने ही विषय, अनुभवों की भरमार रखना, दूसरों को मौका न देना, किसी की बहिन-बेटी के सौंदर्य की चर्चा करना, परनिंदा आदि से मनुष्य के ओछेपन का अंदाजा कोई भी सहज ही लगा सकता है।
किसी भी तरह के चारित्रिक, व्यावहारिक दोष मनुष्य को असफलता और पतन की ओर प्रेरित कर सकते हैं। समाज में उसका मूल्य एवं प्रभाव नष्ट कर सकते हैं। महान पंडित, विज्ञानी, बलवान रावण केवल अपने अहंकार और परस्त्री हरण में ही नष्ट हो गया। सारे समाज ने, यहाँ तक कि पशु-पक्षियों तक ने उसका विरोध किया। इसी तरह इतिहास के पृष्ठों पर लिखी पतन की कहानियों में मनुष्य की चारित्रिक-हीनता ही प्रमुख रही है। चरित्र और व्यवहार की साधारण-सी भूलें मनुष्य की उन्नति एवं विकास का रास्ता रोक लेती हैं। दूसरी ओर छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने वाले जागरूक, तत्पर एवं रचनात्मक दृष्टिकोण वाले लोग असफलताओं के बीच भी सफलता के नए मार्ग ढूँढ निकालते हैं और उस हेतु व्यापक सहयोग-संबल प्राप्त कर लेते हैं।
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