आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
संसार में उन्नति करने और सफलता पाने की असंख्य दिशाएँ हैं। असंख्य लोग उनमें बढ़ते और सफल होने का प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु कुछ लोग देखते-ही-देखते सफल हो जाते हैं और कुछ चींटी की चाल से रेंगते और तिल-तिल बढ़ते हुए जीवन-भर उतनी दूर तक नहीं जा पाते। दो विद्यार्थी परीक्षा देते हैं। उनमें से एक पास हो जाता है और दूसरा फेल। फेल होने वाला विद्यार्थी सालभर पढ़ता रहा, यथासाध्य अध्ययन में भी कमी नहीं की, किंतु किन्हीं विशेष कारणों अथवा संयोगवश फेल हो जाता है। दूसरा पास होने वाला विद्यार्थी साल-भर खेलता-कूदता और मटरगश्ती करता रहा। किताब को हाथ नहीं लगाता, किंतु परीक्षा में नकल द्वारा अथवा अन्य अनुचित उपायों से पास हो जाता है, तो क्या यह सफल और वह असफल माना जाएगा, नहीं। पढ़ने तथा परिश्रम करने के बाद भी संयोगवश फेल हो जाने वाला उसकी तुलना में सफल ही माना जाएगा।
सफलता की कसौटी परिणाम नहीं बल्कि वह मार्ग है, वह उपाय, वह साधन और वह आधार है, उन्नति एवं विकास के लिए जिन्हें अपनाया और काम में लाया गया है इस विवेचना के प्रकाश में, सफलता के आकांक्षी की अपनी समझ है कि क्रियाविधि को महत्त्व देता है अथवा परिश्रम को। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर विजयी हुआ, लेकिन इतिहास में राणा प्रताप की शौर्यगाथा ही गाई जाती है। प्रश्न जीत-हार का नहीं है, प्रश्न है कि कौन बहादुरी से लड़ा।
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