आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
भाग्य और कुछ नहीं, बीते कल का पुरुषार्थ ही आज का भाग्य बनता है। इस तरह मनुष्य अपने प्रबल पुरुषार्थ द्वारा भाग्य को भी बदल सकता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं। इसीलिए तो कहा है- ''मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।''
अपनी शक्तियों का सदुपयोग मनुष्य को स्वयं करना चाहिए। दूसरों के भरोसे बैठना निकम्मापन है। ईश्वर की सहायता माँगने का अधिकार तब मिलता है, जब हम स्वावलंबी हों। उन्हीं की भगवान मदद भी करता है, जो अपनी मदद खुद करते हैं। अपने पाँवों खड़ा होकर ही मनुष्य उन्नति कर सकता है। पुरुषार्थ मनुष्य जीवन की पहली आवश्यकता है। इसके बिना किसी तरह की उन्नति संभव नहीं है। संघर्ष और सफलता का संबल पुरुषार्थ ही है।
जीवन की सफलता-असफलता पर हमारे व्यवहार की छोटी-छोटी बातों का भी बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। छोटी छोटी आदतें, स्वभाव की जरा-सी विकृति, रहनसहन का गलत ढंग आदि सामान्य-सी बातें होने पर भी मनुष्य की उन्नति, विकास, सफलता के मार्ग में रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती हैं, किंतु इनका सुधार न करके लोग अपनी असफलताओं के दूसरे कारण गढ़कर अपने आपको संतुष्ट करने का असफल प्रयास करते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने आप एक चलता-फिरता- बोलता विज्ञापन है। यह भी सच है कि विज्ञापन जैसा होगा, उसका प्रभाव भी वैसा ही पड़ेगा। बातचीत, वेश-भूषा, रहन-सहन से मनुष्य का व्यक्तित्व प्रदर्शित होता है। जिन बुरी आदतों से अपना गलत विज्ञापन हो, अपना फूहड़पन, बेवकूफी जाहिर हो, उन्हें छोड़ने का प्रयत्न करना आवश्यक है।
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