आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
किसी भी कार्य की योजना बनाना, लंबी-लंबी बातें सोचना एक बात है, उसे वास्तविक जीवन में कार्यों द्वारा अभिव्यक्त करना बिलकुल दूसरी बात है। अनेक व्यक्ति यह गलती करते हैं कि अपनी समस्त शक्तियाँ केवल सोचने-विचारने, योजना निर्मित करने में लगा देते हैं। वास्तविक संसार में प्रत्यक्ष कर दिखाने का उन्हें अवसर ही प्राप्त नहीं होता। ठोस परिश्रम करने की उन्हें आदत नहीं होती। वे हाथ-पाँव के कार्य से दूर भागते हैं। बातें हजार बनाएँगे, कितु कार्य रत्ती भर भी न करेंगे? संसार में इतनी आवश्यकता बातचीत, योजनाओं, जबानी जमा-खर्च की नहीं है, जितनी कार्य की जो विचार कार्यरूप में परिणत हो गया, वह जीवित विचार कहा जाएगा। जिन विचारों, योजनाओं पर अमल नहीं हुआ, जिन्हें प्रत्यक्ष जीवन में नहीं उतारा गया, वह मृतप्राय हैं। उन पर व्यय की गई शक्ति अपव्यय ही है।
क्रियात्मक कार्य ही संसार का निर्माण करता है। सफल व्यक्ति अपने आंतरिक विचार तथा बाह्य कार्य में पर्याप्त समन्वय करने की अपूर्व क्षमता रखते हैं। उनके पास क्रियात्मक विचारों की शक्ति रहती है। वे अपने विचारों को जीवन देते हैं अर्थात उन पर निरंतर काम करते हैं और प्रत्यक्ष जीवन में उतारते हैं।
दृढ़ प्रयत्न और सतत प्रयोग करते रहने वाले पुरुष सिंहों ने इस संसार में विलक्षण क्रांतियाँ की हैं। परिस्थितियाँ उन्हें किसी भी तरह दबा नहीं पाईं दुःख, निराशा, अनुत्साह उनकी कभी राह नहीं रोक पाए। एकाकी पुरुषार्थियों ने वह कर दिखाया है, जो अनुत्साह ग्रस्त कोई बड़ा राष्ट्र भी नहीं कर पाया है।
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