आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
( 4 ) साहस एवं नियमितता - अपने गुणों के आधार पर श्रेय पथ पर बढ़ने वाले व्यक्ति में यदि निर्भयता की कमी है तो समझ लेना चाहिए कि वह अपने लक्ष्य तक न पहुँच सकेगा। भीरु व्यक्ति में आगे बढ़ने का साहस ही नहीं होता वह पग-पग पर आपत्तियों तथा कठिनाइयों की शंका करता रहेगा। सफलता के मार्ग पर असफलता का भय अस्वाभाविक नहीं है। भीरु व्यक्ति इसी अज्ञात अथवा असंभाव्य असफलता के कारण अपना अभियान ही आरंभ न करेगा। जिस श्रेय का आरंभ ही न होगा, उसका परिणाम आ भी किस प्रकार सकता है? संसार में दुष्टों तथा दुश्मनों की कमी भी नहीं है। वे स्वभावत: ही उठते हुए व्यक्ति के मार्ग में अवरोध एवं विरोध बनकर खड़े हो जाते हैं। ऐसे समय में दुष्टों तथा खलों से निपटने के लिए उस साहस की आवश्यकता होती है, जो भीरु व्यक्ति में नहीं होता।
( 5 ) प्रसन्नता एवं मानसिक संतुलन - सफलता पाने के लिए प्रसन्नता की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी शरीर यात्रा के लिए जीवन की। अप्रसन्न व्यक्ति एक प्रकार से निर्जीव ही होता है। एक छोटी-सी असफलता, एक रंचक विरोध आ जाने पर वह छुई-मुई की तरह मुरझाकर निराश तथा हताश हो जाएगा, तब भला इस प्रकार के निम्न स्वभाव वाला व्यक्ति सफलता के महान पथ पर किस प्रकार आरूढ़ हो सकता है? मानसिक संतुलन प्रसन्नता के आधीन रहा करता है। अप्रसन्नता की स्थिति में मनुष्य का संतुलन असंभव है और अंसतुलन निश्चित रूप से असफलता की जननी है।
इस प्रकार सफलता के आकांक्षी व्यक्तियों को चाहिए कि वे श्रेय पाने के लिए सफलता के इन साधनों का अभ्यास एवं विकास करते हुए अपने पथ पर बढ़ें, उन्हें सफलता मिलेगी और अवश्य मिलेगी। सतत क्रियाशीलता ही सफलता का आधार है। जो निष्क्रिय है, कुछ नहीं करता, हाथ-पाँव नहीं हिलाता, आलस्य में पड़ा रहता है, वह वास्तविक अर्थों में जीवित भी नहीं कहा जा सकता। फिर सफल क्या होगा? यह ठीक है कि सफलता का प्रारंभ मनुष्य के आंतरिक जीवन में ही होता है। समस्त महान कार्य विचार क्रम के रूप में मानस पटल पर उदित होते हैं, तब धीरे-धीरे बाह्य जगत में उनका प्रादुर्भाव होता है।
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