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आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


मनुष्य परिश्रमी भी है और आत्मविश्वासी भी, किंतु उसमें जिज्ञासा अथवा लगन की कमी है, तो भी उसका नाम सफल व्यक्तियों की सूची में आ सकना कठिन है। जिसमें जिज्ञासा नहीं है, वह आगे बढ़ने और ऊपर चढ़ने के लिए उत्साहित ही किस प्रकार हो सकता है? जिसमें जिज्ञासा है और उसे साकार करने के लिए लगनशीलता है, अपने ध्येय, लक्ष्य तथा उद्देश्य में निष्ठा है, वह उसे प्राप्त करने से कोई संभव उपाय उठा न रखेगा।

सफलता एक प्राप्ति है, उपलब्धि है, जिसको समाज में समाज की सहायता से ही पाया जाता है। नियम है कि जो देता है, वही पाता है। यदि कोई यह चाहे कि वह संसार में पाता तो सब कुछ चला जाए, किंतु देना कुछ भी न पड़े, तो ऐसा स्वार्थी तथा संकीर्ण भावना वाला व्यक्ति इस आदान-प्रदान पर चलने वाले संसार में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। अस्तु सफलता पाने अथवा उसकी संभावनाएँ सुनिश्चित बनाने के लिए आवश्यक है कि किसी भी आवश्यक त्याग तथा बलिदान के लिए सदा तत्पर रहा जाए।

( 3 ) स्नेह एवं सहानुभूति - सफलता अथवा उसके लिए प्रयत्न में यदि स्नेह तथा सहानुभूति का समावेश न किया जाएगा, तो वह या तो असफलता में बदल जाएगी अथवा प्राप्त ही नहीं होगी। जो कूर, कठोर तथा असंवेदनशील है उसके ये दोष ही उसके मार्ग में कांटे बनकर बिखर जाएँगे। उन्नति तथा विकास की ओर चलने के इच्छुक को स्नेह तथा सहानुभूति को स्थान देना आवश्यक है, जिससे कि प्रतिदान में वह भी स्नेह-सहानुभूति पाता रहे और उसका पथ प्रशस्त होता रहे।

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