आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
|
0 |
मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
इस संसार में विभिन्न प्रकार की राष्ट्रीयताओं, मजहबों, संप्रदायों, जलवायु वातावरण का जो अंतर पाया जाता है और राजनैतिक, भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से यह जिस प्रकार हजारों भागों से बँटा हुआ है, उसे देखते हुए प्रत्येक मनुष्य से शिष्टाचार के एक से नियमों के पालन की आशा करना युक्तियुक्त नहीं है। हिंदू मुसलमान और ईसाइयों के जातीय शिष्टाचार में अनेक बातें एक-दूसरे से भिन्न हैं। फिर भी वर्तमान समय में वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण सब लोगों का मिलना-जुलना और उनका पारस्परिक व्यवहार, लेन-देन इतना अधिक बढ़ गया है कि अब शिष्टाचार के कुछ ऐसे सामान्य नियम भी बन गए हैं, जिनका ज्ञान प्रत्येक मनुष्य को होना उचित है। जहाँ अन्य देशों की सभ्यता और शिष्टाचार में बाह्य नियमों और कार्यों पर अधिक जोर दिया गया है, भारतीय संस्कृति शिक्षा देती है कि हम अपने परिचितों के प्रति शिष्टाचार के बाहरी नियमों का पालन करते हुए उनके प्रति हृदय में सद्भावना और सहृदयता भी रखें। इन आंतरिक भावनाओं से ही हमारे व्यवहार में वह वास्तविकता उत्पन्न होती है, जिसकी तरफ सच्चे व्यक्ति आकर्षित होते हैं।
शिष्टाचार और सहृदयता का परस्पर बहुत अधिक संबंध है। जिसकी विचारधारा और मानसिक वृत्तियों शुष्क, नीरस और कठोर हो गई हैं, वह किसी के साथ प्रेमपूर्वक नहीं मिल सकता, न किसी के साथ हार्दिक शिष्टाचार का व्यवहार कर सकता है। इसका परिणाम यह होगा कि दूसरे लोग भी उससे उपेक्षा तथा पृथकता का व्यवहार करेंगे और वह संसार में अकेला ही अपने जीवन को व्यर्थ में खोता रहेगा। सहृदयता एक ऐसा गुण है, जिससे एक साधारण श्रेणी का व्यक्ति भी अनेक लोगों का प्यारा मित्र, घनिष्ठ सखा बन जाता है और साधारण साधनों वाला होता हुआ भी आनंदमय जीवन व्यतीत कर लेता है।
|