आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
बहुत से लोग शिक्षा और अच्छे फैशन वाले वस्त्रों के प्रयोग को ही सभ्यता और शिष्टाचार का मुख्य अंग समझते हैं, पर यह धारणा गलत है। महँगी और बढ़िया पोशाक पहनने वाला व्यक्ति भी अशिष्ट हो सकता है और गाँव का एक हल चलाने वाला अशिक्षित किसान भी शिष्ट कहा जा सकता है। इस दृष्टि से जब हम अपने पास-पड़ोस पर दृष्टि डालते हैं और आधुनिक शिक्षा प्राप्त नवयुवकों को देखते हैं, तो हमें खेद के साथ स्वीकार करना पड़ता है कि इस समय हमारे देश में से शिष्टाचार की प्राचीन भावना का ह्रास हो रहा है। आज के पढ़े-लिखे युवक प्राय: शिष्टाचार को शून्य और उच्छृंखलता को आश्रय दे रहे हैं। कॉलेज और स्कूलों में पढ्ने वाले अधिकांश विद्यार्थी रास्ते में और विद्यालय में भी आपस की बातचीत में अकारण ही गालियों का प्रयोग करते हैं, अश्लील भाषा का प्रयोग करते हैं और धक्का-मुक्की करते दिखाई देते हैं। इन सबके उठने-बैठने का तरीका भी सभ्य नहीं कहा जा सकता।
हमारे आचरण और रहन-सहन में और भी ऐसी अनेक छोटी-बड़ी खराब आदतें शामिल हो गई हैं, जो अभ्यासवश हमको बुरी नहीं जान पड़तीं, पर एक बाहरी आदमी को वे असभ्यता ही जान पड़ेंगी। उदाहरण के लिए किसी से कोई चीज उधार लेकर लौटाने का पूरा ध्यान न रखना, माँगी चीजों को लापरवाही से रखना और खराब करके वापस करना, बाजार से उधार वस्तु खरीदकर दाम चुकाने का ध्यान न रखना, किसी व्यक्ति को वायदा करके घर बुलाना और स्वयं बाहर चले जाना, पत्रों का समय पर जवाब न देना, अपने कार्यालय में हमेशा देर करके जाना। इस प्रकार की सैकड़ों बातें हैं, जिनमें मनुष्य की प्रतिष्ठा में अंतर पड़ता है और वह दूसरों की आँखों में हलके दरजे का प्रतीत होने लगता है।
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