आचार्य श्रीराम शर्मा >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्रश्रीराम शर्मा आचार्य
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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है
शिष्टाचार के इन नियमों में सबसे पहले यही शिक्षा दी गई है कि अपने यहाँ जो आए उसका आदर केवल ऊपर से ही नहीं, वरन मन, नेत्र, मुख और वाणी सब तरह से करें। सबसे पहली बात यह है कि हम अपने मन में निश्चय रखें कि किसी आगंतुक का सत्कार-सेवा करना हमारा मानवीय कर्त्तव्य है। यदि हम उसका पालन नहीं करते तो मनुष्यता से गिरे हुए सामान्य पशु की तरह ही माने जाएँगे। यही भारतीय शिष्टाचार का मूल है, जिसके आधार पर यहाँ अतिथि सत्कार गृहस्थ का सबसे बड़ा धर्म बतलाया गया है। यह देश का क्रियात्मक शिष्टाचार था, जिससे प्रकट होता था कि हम वास्तव में कष्ट सहन, त्याग, परिश्रम करने को तैयार हैं। इस प्रकार के स्वागत-शिष्टाचार का प्रभाव ही मेहमानों पर चिरस्थाई रह सकता था।
अब प्राचीन काल की परिस्थितियों में बहुत अंतर पड़ गया है। संसारभर के लोगों का एक-से-दूसरे देश में आना-जाना और पारस्परिक लेन-देन, व्यवहार बहुत बढ़ गया है। इस समय शिष्टाचार की व्याख्या करना बहुत कठिन हो गया है, क्योंकि जो कार्य एक देश में शिष्टाचार माना जाता है, वही दूसरे में उसके विरुद्ध समझा जा सकता है। इन स्थानीय या एक देशीय शिष्टाचार की बातों को छोड़ देने पर भी पिछले सौ-डेढ़ सौ वर्षों में संसार की विभिन्न सभ्यताओं के सम्मिलन से कुछ ऐसे सर्वमान्य नियम निकल आए हैं, जिनको अंतर्राष्ट्रीय शिष्टाचार कहा जा सकता है।
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