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			 नई पुस्तकें >> रश्मिरथी रश्मिरथीरामधारी सिंह दिनकर
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रश्मिरथी का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जिसका रथ रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों का हो। इस काव्य में रश्मिरथी नाम कर्ण का है क्योंकि उसका चरित्र सूर्य के समान प्रकाशमान है
 ‘‘मर गयी नहीं वह स्वयं, मार सुत को ही,
 जीना चाहा बन कठिन, क्रूर, निर्मोही।
 क्या कहूँ देवि ! मैं तो ठहरा अनचाहा,
 पर तुमने माँ का खूब चरित्र निबाहा।”
 
 ‘‘था कौन लोभ, थे अरमान हृदय में,
 देखा तुमने जिनका अवरोध तनय में?
 शायद यह छोटी बात-राजसुख पाओ,
 वर किसी भूप को तुम रानी कहलाओ।”
 
 ‘‘सम्मान मिले, यश बढ़े वधूमण्डल में,
 कहलाओ साध्वी, सती वाम भूतल में।
 पाओ सुत भी बलवान, पवित्र, प्रतापी,
 मुझ सा अघजन्मा नहीं, मलिन, परितापी।”
 
 ‘‘सो धन्य हुईं तुम देवि ! सभी कुछ पा कर,
 कुछ भी न गँवाया तुमने मुझे गँवा कर।
 पर अम्बर पर जिनका प्रदीप जलता है,
 जिनके अधीन संसार निखिल चलता है।”
 
 ‘‘उनकी पोथी में भी कुछ लेखा होगा,
 कुछ कृत्य उन्होंने भी तो देखा होगा।
 धारा पर सद्यःजात पुत्र का बहना,
 माँ का हो वज्र-कठोर दृश्य वह सहना।”
 			
		  			
						
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