नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
अरे! ओ सुप्त! तू भी अपने नेत्रों को खोल और जाग जा
हर्ष की बेला में खूब आनन्दित हो जाओ।
मैं तुमसे ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि पराधीनता रूपी निशा की श्रृंखलायें टूट चुकी हैं, और जो अब तक स्वप्न था उसी स्वप्न के हानिकारक अस्तित्व का विनाश होकर–वही सत्य रूप में परिवर्तित हो गया है।
शब्द ने अपने अवगुंठन में कोलाहल मचा दिया है, और प्रातः की कलिकायें भी अब नयनोन्मेष की साधना में रत हैं। अतः ओ सुप्त! अब तू भी अपने नेत्रों को खोल और जागजा।
अब स्वतन्त्रता से प्ररेणा पाकर प्रकाश की उल्लासमयी बधाइयाँ पूर्व के इस छोर से पश्चिम के उस छोर तक फैल रही हैं।
–और जर्जरित तथा भग्न कारागृह के भग्नावशेष से भी अब विजय के गीत गूँज-गूँज कर आकाश की ओर बढ़ रहे हैं।
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