नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
यदि कोई न जागे तो उसे जगाओ अवश्य पर चाँटा न मारो
तुमने मुझे पुकारा था, पर तुम्हारी पुकार को मैं न सुन सका क्योंकि अपनी दीवारों की साया में मैं सोया हुआ था।
मेरे न सुनने पर तुमने मुझे चांटा मार कर जगा दिया, पर इस प्रकार जागने पर मेरी आँखों में आँसू आ गये।
–तब जागने पर, चकित होकर मैंने देखा कि सूर्य उदित हो चुका था, सागर का प्रवाह-ज्वार किसी गहनता से एक सन्देश ला चुका था–बस तभी मेरी नौका भी, नाच-रंग में लिप्त सागर के वक्षस्थल पर टकराने के लिए तत्पर हो गई।
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