नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
यदि ‘प्रेम’ मेरे लिए नहीं है तो क्यों यह सब प्रेममय दीख रहा है
यदि ‘प्रेम’ मुझे नहीं प्राप्त हो सकता तो क्यों इस उषा ने अपने हृदय को गीतों में विक्षिप्त कर रखा है और क्यों ही वह प्रेममय कानाफूसी मुझे सुनाई दे रही है जिसे दक्षिण वायु ने इन नव-जनित पत्तियों के मध्य बखेर दिया है?
यदि मेरे भाग्य में ‘प्रेम’ नाम की कोई वस्तु नहीं, तब क्यों यह अर्धरात्रि इन नक्षत्रों की वेदना को अपनी इच्छाओं की अशान्त शान्ति में सह रही है।
यदि ‘प्रेम’ केवल मेरे लिए नहीं है तो मेरा यह मूर्ख हृदय क्यों अपने पागलपन में आशामय होकर उस सागर तक पहुँच जाता है जिसका अन्त वह स्वयं नहीं जानता?
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