नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
प्रकृति से हमारे प्रेम प्रफुल्लन में कितना सहारा मिलता है
तुमसे मेरा साक्षात्कार उस स्थान पर हुआ था जहाँ निशि ने दिवस के छोर को अपने हाथों से छुआ था।
हम तुम वहाँ मिले थे जहाँ प्रकाश अंधकार को चकित कर उसे प्रातः की बेला में परिवर्तित कर देता है
और हाँ मुझे याद है...हम तुम वहाँ मिले थे जहाँ जल की लहरें एक तट के चुम्बन को दूसरे तट तक ले जाती हैं।
इस अद्म्य नीलाकाश के हृदय से एक स्वर्णमय पुकार आया करती है और जब-जब भी वह आती है तभी अपने विषादमय धुँधले आँसुओं को हटाकर मैं तेरे मुख की ओर देखने का प्रयत्न करता हूँ पर किसी कारणवश मैं नहीं जानता...कि कदाचित् तू मुझे कभी दीख भी जाती है अथवा नहीं।
* * *
|