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प्रेमी का उपहार

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9839
आईएसबीएन :9781613011799

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद

जब तुझे देखता हूँ तभी तुझे अपने को देखते हुए पाता हूँ।

बाजार बन्द हो जाने पर गोधूलि के समय वे घर की ओर आने लगते हैं, तभी मैं भी वहीं सड़क के किनारे छिपकर बैठ जाता हूँ और देखता हूँ–तो क्या? कि तू नाव चला रही है।

तू अनवरत गति से नदिया के काले पानी को अपनी नौका द्वारा चीरती हुई कहीं बहुत दूर निकल जाती है। ऐसे ही नौकाविहार करते-करते संध्या हो जाती है। तब सूर्यास्त की किरणें तेरी नौका की पाल पर खेलती हुई दीख पड़ती हैं।

अपनी शान्त मुद्रा में नौका-विहार करते-करते तू एकाएक मेरी ओर देखने लगती है तब मैं तेरे नयनों को पकड़ लेता हूँ क्योंकि मैं उन्हें अपने को देखते हुए पाता हूँ।

जहाँ तूने मुझे देखा कि तुझे पुकारने लगता हूँ और तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझे भी अपनी नौका का सहारा देकर इस जीवन-संसार से पार ले चल।

* * *

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