नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मेरा हृदय कहाँ से अपनी पुकार सुनता है
जब भी मैं कहीं जाना चाहता हूँ, सूर्य बादलों को भेदकर दिन बिछा देता है। उस समय किसी स्वर्गीय विस्मय की भाँति आकाश भी पृथ्वी को घूर-घूर कर देखने लगता है।
मेरा हृदय क्यों दुःखित है?–इसलिए कि, उसे नहीं मालूम वह अपनी पुकार कहाँ से सुनता है।
क्या यह पवन संसार की उस बात को दोहराने आता है जो मैंने अश्रुओं के संगीत में परोकर सूर्य के प्रकाश में छोड़ दी थी?
–अथवा, यह उस प्रदेश से जीवन को इस पृथ्वी पर ला रहा है जो दूर सागर में स्थित अन्जान पुष्पों की ग्रीष्म में धूप का आनन्द लेता है।
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