नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
जीवन का दिन बीत चुका अब जीवन की संध्या आ गई
पवन बहने के लिए तत्पर है–यह देखकर यात्रा आरम्भ करने के लिए अपने गीतों की एक पाल बना ली है और नौकावाहक को आदेश दे दिया है कि वह पतवार को सम्हाले।
मेरी नौका स्वतन्त्र होना चाहती है। उसकी इच्छा है कि जल एवं वायु की स्वतन्त्र गति में वह भी लयपूर्वक नाचे।
दिन अब बीत चुका है और संध्या आ गई है। यही कारण है कि मेरे मित्र भी मुझसे बिदा मागकर चले गये हैं।
श्रृंखला को ढीली करके लंगर को हटा दो, नौकावाहक; क्योंकि तारों के प्रकाश में भी हमारी नौका चलेगी।
निशा में भी नौका-विहार करने का जो मेरा हट है उसे जानकर वायु रोमांचित हो गई है और अपने रोमांच से उसने रात्रि के संगीत में गुनगुनाहट भर दी है।
उस निशा में भी मेरा नौका-वाहक अपने नौका-यंत्र पर बैठा है।
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