नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मैं चाहता हूँ–मैं अकेला ही रहूँ। कोई रहने ही नहीं देता
एक बार नटखट बसन्त अपनी मतवाली हँसी को लेकर मेरे जीवन में आया। मेरे जीवन में पदार्पण करते ही उसने जीवन के सूखे गुलाब-पुष्पों को प्रफुल्लित बना दिया और साथ ही, नवीन अशोक की पत्तियों को अपने लाल चुम्बनों से ऐसा रंगा कि समस्त आकाश जलता हुआ दीख पड़ने लगा।
वही बसन्त मेरे एकाकी जीवन में किसी निर्जन गली से घुस आया है। अपनी गहन शान्ति की विचारवान छाया को लेकर वही मेरी मुंडेर पर आ बैठा है और वही बैठा हुआ कहीं दूर खेतों के पार झाँक रहा है–जहाँ पर पृथ्वी की हरियाली आकाश-देव की पीत काया को देखकर पहले तो अशक्त बन गई और फिर चेतनाहीन हो गई।
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