नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
जब तुम मुझे उपहार दो, तो सुख न देना। मैं दुःख का पुजारी हूँ
कितनी ही बार ऐसा हुआ है कि बसन्त-दिवस आ-आकर हमारे द्वार पर खटखटा गया। मैं अपने कार्य में व्यस्त रहा, नहीं समझ में आता तुमने क्यों न उसे उत्तर दिया? अब जब कि मैं बस एकाकी हूँ और क्षय रोग से त्रस्त हूँ, वह बसंत दिवस आता है पर मैं अपने द्वार से उसे लौटा देने में असमर्थ हूँ।
यदि बसंत-दिवस इस विचार को लेकर आया कि मुझे आनन्द-मुकुट पहना दे और फिर चला जाये तो बस तभी उस विचार से पहले मेरा द्वार बन्द था।
पर अब, जब भी वह दुःख की भेंट हमें अर्पित करने आता है–अपना मार्ग खुला पाता है।
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