नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
वह मेरा साथ छोड़ गई पर मेरा प्रेम अब भी मेरे साथ है *
मेरे पुष्प दूध, मधु और मदिरा के समान थे। मैंने उन सब को इकट्ठा कर एक सुनहरी फीते से बाँधा था–पर तिस पर भी, न जाने कैसे वे मेरी दृष्टि से बच गये, इधर-उधर भाग गये और मेरे पास केवल...केवल वह फीता रह गया।
मेरे गीत दूध, मधु और मदिरा के समान थे। मैंने उन्हें अपने हृदय की गति से बाँध रखा था। परन्तु, उन्होंने तो अपने पंख फैला दिये और मुझसे दूर भाग गये। तब मेरे पास नीरस समय के केवल प्रियतम पल शेष रह गये और उन्हीं के साथ मेरा हृदय शान्ति में स्पंदित होने लगा।
समझ लो! जिस सौन्दर्य को मैं प्रेम करता था, वह भी दुग्ध, मधु और मदिरा के समान था। उस सुन्दरी के अधर उषा की बेला में खिले गुलाबी पुष्पों के समान थे–और उसके नयन मधुमक्खी के समान काले थे। मुझे ज्ञात था कि–यदि मैंने अपने हृदय को अशान्त हो जाने दिया तो वह बेचारी मेरे दुःख से त्रस्त हो उठेगी। अतः मैंने अपने हृदय को शान्त ही रखा। मैं सदैव अंजाना बना रहा पर उसने मुझे फिर भी धोखा दिया और मुझे छोड़ दिया, वैसे ही उसने भी मुझे धोखा दिया, और वह भी छोड़ कर चली गई। इस संसार में अब मैं अकेला ही हूँ और केवल मेरा प्रेम ही मेरे अवशेष है।
(*श्री सत्येन्द्रनाथ दत्ता की बंगला से अनुदित।)
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