नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
अव्यक्त प्रेम की तीक्ष्ण वेदना से ही तो बसंत के पुष्प खिलते हैं
अव्यक्त प्रेम की तीक्ष्ण वेदना जैसे व्यक्त हो जाती है वैसे ही बसंत-पुष्प कलियों से निकल कर फूट पड़ते हैं। इन्हीं बसंत पुष्पों की सुगन्ध पाकर मुझे अपने गत्-जीवन के बीते गीतों की याद आ जाती है। तब मुझे प्रतीत होता है मानो इच्छाओं की पत्तियाँ मेरे हृदय में उग आई हैं।
मेरा प्रणय, मेरे समीप नहीं आया, फिर भी उसका शिथिल स्वर्ग मेरे पास है–मुझ में स्थित है। उसकी बोली अभी भी इन हरे-भरे सुगंधित खेतों से गूँज रही है। उसका एकटक हो मेरी ओर देखना–अभी भी निराशा की वेदना से त्रस्त-आकाश में दीख पड़ता है–पर उसके मनमोहक नयन कहाँ हैं?
उसके चुम्बन अभी भी भूमंडल की वायु में छिटक रहे हैं, पर उसके मधुमय अधर कहाँ हैं?
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