नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
जीवन की इस निराशा में क्या तो तुमसे कह दूँ और क्या तुम समझ सकोगी
उस घास के मैदान के पास जैसे ही हम दोनों ने एक दूसरे के नयनों को देखा, वैसे ही, मुझे ध्यान आया कि मुझे उससे कुछ कहना है। पर वह तो मुझसे बिना कुछ कहे-सुने ही चली गई और ‘वह शब्द’ जो उसके पास तक मुझे पहुँचाना था–वही न पहुँचने की अवस्था में प्रत्येक पल की प्रत्येक लहर से ऐसे ही टकराने लगा जैसे कोई भाग्यहीन नौका रात-दिन किसी पत्थर की चट्टन पर टकराती रहती है। उसके चले जाने के पश्चात् मुझे ऐसा लगा मानो मैं, पतझड़ के बादलों में, किसी की अनन्त खोज के लिए घूम रहा हूँ–अथवा कभी-कभी संध्या समय किसी पुष्प का प्रफुल्लन मैं स्वयं बन जाता हूँ, केवल यह देखने के लिए कि वह कौनसा क्षण है जिसे सूर्यास्त खो देता है।
किन्तु मैं कैसे भूल जाऊँगा!–वही खोया हुआ क्षण मेरे हृदय में जूगनू के समान चमकता रहता है। पर ऐसा क्यों? केवल यह जानने के लिए कि निराश जीवन की धुंधली गोधूलि में ‘उस शब्द’ का अर्थ क्या है जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ।
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