नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
एक शान्त संसार अग्नि की ज्वाला में जल रहा है पर जीवित है
मैंने उसे स्वप्न में देखा था। वह मेरे ही समीप बैठी अपनी कोमल अंगुलियों से मेरे केशों को कुरेद रही थी। ऐसा अनुभव होता था मानो वह किसी वाद्य-यंत्र के तारों पर अपनी अंगुलियाँ चलाकर गीत निकालने का प्रयत्न कर रही हो। तब मैं उसके मुख की ओर देखने लगा और न जाने क्यों अपने आँसू न रोक पाया। मैं कुछ भी न कह पाया, पर तिस पर भी, मेरी वेदना ने मेरी निंदिया को तोड़ दिया और वह ऐसे टूट गई जैसे कोई बबूला अपने आप टूट जाता है।
मैं उठ बैठा और मैंने अपनी खिड़की से देखा कि तारों के समूहों से बना दूधिया-मार्ग बहा जा रहा है। दूधिया-मार्ग नहीं! एक शान्त संसार अग्नि की ज्वाला से जल तो रहा है पर फिर भी बहा जा रहा है। इस पर मैं आश्चर्य किये बिना न रह सका और मैं तुरन्त सोचने लगा–‘कितना अच्छा होता यदि वह भी ऐसा ही स्वप्न देखती जैसा मैंने देखा है।’
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