नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
सब कुछ तो तुम्हें समर्पित है! अब है ही क्या अवशेष मेरे पास?
मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा-बहुत है वह सभी-कुछ मैंने अपनी गोदी में भर तुम्हें समर्पित कर दिया है। अब मेरे पास, वास्तव में, रह ही क्या गया है? मैं और क्या दे दूँ तुम्हें, और तुमसे मैंने बचा ही क्या लिया है?
आश्चर्य न करूँ तो क्या करूँ? क्योंकि मुझे ध्यान है कि मेरे पास कुछ भी तो नहीं है? कल तुम्हारे चरणों की भेंट के लिए क्या ला पाऊँगा?
अब तो मैं अपनी तुलना उस वृक्ष से करने लगा हूँ जिसकी वसंत पुष्पों से भरी गोदी ग्रीष्म के अन्त में खाली हो जाती है। अब तो मैं केवल उस विरही वृक्ष के समान हूँ जो संगहीन बेचारा! अपनी पुष्प विहीन एवं उजड़ी डालों को किंचित् ऊपर उठा बस आकाश की ओर एकटक देखता रहता है। तुम्हें क्या मालूम वह क्यों देखता है?
क्या तुमसे पूछ लूँ? क्या उन सब भेंटों में जो मैंने तुम्हें अब तक अर्पित कीं-एक भी पुष्प ऐसा न निकला जिसे अपनी शाश्वत् अश्रु-बिंदु से मैंने इतना मोह लिया हो कि वह कभी न कुम्हलाये?
क्या मैं तुमसे आशा करूँ कि तुम मुझे याद रख सकोगी? बसंत के अन्त में अपने खाली हाथों की झोली फैलाकर मैं तुम्हारे पास आ...आऊँगा और तुमसे कहूँगा–‘अब मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूँ।’
तब क्या तुम अपने नेत्रों को झुकाकर मेरे प्रति कृतज्ञता भी प्रकट न कर सकोगी?
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