नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तुम्हारी काली आँखों को देखकर ही तो बादल बरसते हैं।
मेरे अनुराग! आज यदि मैं व्यग्र हूँ तो मुझे क्षमा कर दो। यह तो ग्रीष्म की केवल पहली ही बौझार है जब नदी के जंगल भरे हुए हैं, और तभी यौवन की पराकाष्ठा पर पहुँचे हुए ये कदम-वृक्ष अपनी सुगन्ध-रूपी सुरा के प्याले द्वारा अपने समीप से जाती हुई वायु को मोहित कर लेते हैं।
आकाश के प्रत्येक कोने से देखो–कि आकाश विद्युत अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से कटाक्ष कर रही है और साथ ही यह भी अनुभव करो कि दिशाओं की पवनें तुम्हारे केशों में बिखरी पड़ी हैं।
मेरे प्रेम! क्या तुम मुझे क्षमा नहीं कर दोगे–हाँ, यदि मैं आज ही तुम्हें अपनी श्रद्धा अर्पित कर दूँ। देखो! प्रतिदिन का संसार वर्षा को अपने धुंधलेपन में छिपाये रहता है। गाँवों में सारा काम रुक गया है क्योंकि सारे चरवाहे उजाड़ पड़े हैं।
तुम्हारी काली-काली आँखों में आने-वाली वर्षा का संगीत है। तुम्हारे ही द्वारे तो सावन का महीना अपने नीले वस्त्रों में तुम्हारे केशों के लिए पुष्प लिए खड़ा रहता है।
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