नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
काला वर्ण अथवा गौर वर्ण, जिसे मैं प्रेम करता हूँ वह प्रेमास्पद है
गाँव में उसके पड़ौसी–सब ही उसे ‘काली’ कहते हैं किन्तु मेरे लिए तो वह–सच जानो–मेरे हृदय की ‘लिलि’ है, यद्यपि लिलि के समान श्वेतवर्ण वाली वह नहीं।
मैंने सबसे पहिले उसे खेतों में देखा और उस समय देखा जब प्रकाश घने बादलों के कारण क्षीण बना हुआ था। उस समय उसका सिर आंचलहीन था, उसका घूँघट-पट हटा हुआ था और उसके केश स्वयं ही ढीले होकर उसकी गर्दन पर लटके हुए थे। हाँ! वह ‘काली’ हो सकती है जैसे कि ‘वे’ गाँव में कहते हैं, पर मैंने तो उसकी काली आँखें देखी हैं और उनसे मैं प्रसन्न हूँ।
जब चंचल वायु की नाड़ी ने तूफान मचा दिया तब वह अपनी कुटिया से बाहर को दौड़ी और उसी समय उसने अपनी चितकबरी गैया को निराशा में रंभाते देखा। एक क्षण के लिए उसने बड़ी-बड़ी आँखों को उठाकर बादलों को देखा और वह रोमांचित हो गई–यह जानकर कि अब तो आकाश से वर्षा आ रही है। मैं तो चावलों के खेत के एक कोने पर खड़ा हो गया और यदि उसने मुझे देख लिया तो इसका कारण यह था कि वह मुझे जानती थी और कदाचित मैं भी उसे जानता था।
वह इतनी ‘काली’ है जितनी कि ग्रीष्म ऋतु में वर्षा की संदेश शक्ति–उतनी काली जितनी कुसुमित वन की छाया और हाँ! मुझे ठीक मालूम है–मई की कामुक रात्रि में किसी अनजान् प्रेम की प्राप्ति के लिए जो एक व्यग्र इच्छा होती है ‘वह’ उसी के समान काली है।
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