नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तुमने मुसकराने की चेष्टा की और मैंने तुम्हारा घूँघट-पट हटाने की
गत रात्रि को उस बगिया में मैंने तुम्हारे जीवन को अपनी यौवन-सुरा अर्पित की थी। तुमने उस प्याले को अपने अधरों से लगाया, अपनी आँखें बन्द कीं और ज्यों ही तुम मुस्कुरायीं, त्यों ही मैंने भी साहस करके तुम्हारा घूँघट-पट हटा दिया–तुम्हारे बँधे हुए केशों को खोल दिया और मधुमय शान्ति से प्रेरित तुम्हारे इस मुख को अपने वक्षःस्थल पर खींच ही लिया। मैंने ऐसा तब किया था जब गत रात्रि के चन्द्रस्वप्नों ने समस्त सृष्टि की निद्रा को वशीभूत कर उस पर अपना अस्तित्व जमा लिया था।
किन्तु आज स्नानित हो और श्वेत साड़ी पहने तथा हाथों में फूलों की डलिया लिए, तुम ओस की शीतक-शान्ति से प्रेरित बेला में किसी देव मन्दिर जा रही हो। अतः मैं भी इस एकाकी मन्दिर-मार्ग के समीप स्थित उषा की शान्ति में किसी वृक्ष की छाया में अपना शीश नवाये खड़ा रहूँगा।
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