नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
अपनी कलियों की गोद में सोए हुए पुष्पों को न तो जगाओ और न तोड़ो
प्रातः काल, तुम्हारे मन्दिर में घण्टों और घड़ियालों के बजते ही स्त्री और पुरुष अपनी पुष्पक-भेटों को लेकर बनीले-मार्ग को द्रुत गति से पार करने लगे।
किन्तु मैं तो वहीं किसी घास पर पड़ा रहा और तुम्हारे पुजारियों का मैंने अवरोध नहीं किया।
–अब मैं सोचता हूँ, मेरा उस समय निश्चल एवं शान्त होकर सुस्त पड़ा रहना अच्छा ही था क्योंकि उस समय पुष्प कलियों की क्रोड में सोए हुए थे।
–वे बेचारे केवल अब संध्या में कलियों की गोद से उठे हैं। अतः मैं भी अपनी संध्या-पूजा के लिए जा रहा हूँ।
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