नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
कि-वह सदैव तुम्हारे साथ है–तुम इस बात को न भूलना
तुम भी उसके साथ ऐसे ही दौड़ों जैसे उसके मित्रगण दौड़ते हैं और दौड़कर वहाँ पहुँच जाओ जहाँ वह अपने साथियों के साथ काम करता है।
वह जहाँ भी खेल रहा है वहीं तुम भी उसके साथियों के साथ उसके चारों ओर बैठ जाओ।
जहाँ कहीं भी वह जाता है वहीं तुम भी उसके अनुगामी बनकर जाओ और उसके नगाड़े की प्रत्येक चोट से उत्पन्न लय के साथ अपने प्रत्येक पद-चाप को मिला दो।
जीवन के जनरव रूपी मेले में तुम भी घुस पड़ो क्योंकि यही जनरव, जीवन और मृत्यु का एक मेला है–और यहीं–इसी के मध्यस्थ ‘वह’ भी अपनी समग्र सृष्टि सहित रहता है।
कंटक-पथ के द्वारा पहाड़ियों को पार करते समय तुम अपनी यात्रा में कहीं लड़खड़ाना मत।
तुम्हारी यात्रा के समय उसकी प्रत्येक पुकार तुम्हारे प्रत्येक पद के साथ गूँजेगी और तब तुम समझ लेना कि तुम्हारी यात्रा की भयावह स्थिति में भी वह तुमसे प्रेममय वार्तालाप कर रहा है।
* * *
|