नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
तेरे जाने के बाद, तेरी सेवा के बदले में केवल एक दीप जला देते हैं
अपने प्रातः कालीन गीतों को गाकर वह मेरा द्वार खट-खटाता है–-इसलिये कि अपनी उषा के शुभ नमस्कार को मुझे अर्पित कर दे।
बस उसी के आने के पश्चात हम अपनी गायों को चरागाहों की ओर ले जाते हैं और उन्हें चरने के लिये छोड़कर स्वयं किसी छाया में बैठकर अपनी बाँसुरी बजाने लगते हैं।
बाजार के जनरव में हम उसे केवल इसलिये खो देते हैं कि खोने के बाद उसे खोज निकालें और फिर पा लें।
दिवस के उस तल्लीन समय में जब सब अपने कार्य में रत रहते हैं–हम एकाएक उसके पास पहुँच जाते हैं और वह कहीं किसी पथ की घास के तट पर ही बैठा मिल जाता है।
जब वह अपने नगाड़ों को पीटने लगता है तो हम चलने लगते हैं और जब वह गाता है तो हम नाचने लगते हैं।
–अपने हर्ष और विषाद का दाँव लगाकर हम अन्त तक उसके खेल को खेलते हैं।
हमारी नौका की चालन-शक्ति को अपने हाथ में ले, वह वहीं खड़ा हो जाता है, और तब उसके साथ ही स्वयं हम भी सागर की भयानक लहरों पर टकराते रहते हैं।
यद्यपि दिवस अपनी यात्रा समाप्त कर बीत जाता है, पर क्या हुआ, उसके लिए हम भी एक दीप जला देते हैं और उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं।
* * *
|