नई पुस्तकें >> प्रेमी का उपहार प्रेमी का उपहाररबीन्द्रनाथ टैगोर
|
0 |
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गद्य-गीतों के संग्रह ‘लवर्स गिफ्ट’ का सरस हिन्दी भावानुवाद
मैं प्रेमी को प्रेम से पृथक नहीं कर सकता, अतः प्रेम के साथ प्रेमी भी आये
तुमने तो मुझे बहुत कुछ दे दिया, –
किन्तु मैं तो तुमसे और माँगता जा रहा हूँ।
क्या तुम्हें ज्ञात है?–मैं न केवल एक घूँट जल के लिए तुम्हारे पास आता हूँ, वरन् जलमय निर्झर के लिये भी–
मैं न केवल इसलिये तुम्हारे पास आता हूँ कि सांसारिक द्वार पर पहुँचने के लिए तुम मुझे मार्ग दिखा दो वरन् इसलिए भी कि ईश्वर के घर तक भी पहुँचने के लिए भी तुम्हीं मेरे दिग्दर्शन करो। मैं केवल इस आशा से तुम्हारे पास आता हूँ कि तुमसे प्रेम रूपी उपहार लेने के साथ-साथ उस ‘प्रेमी’ को भी ले लूँ जो प्रेममय होकर मुझे ‘प्रेम’ देता है।
* * *
|